बसन्त थापा “जीवन”
चन्द्रवती, तनहुँ
हलः–अबुधावी, युएइ
तिम्रो मेरो आँखा जुद्धा डराएंकी सानु।
यो मनले तिमीलाई मन पराएंकी सानु।।
तिमीसंग अनायासै रमाउँदा एकैछिन।
कल्पनाको संसारमा हराएंकी सानु।।
कस्तो होला तिम्रो मन ठाउँ छकी बस्नलाई।
कल्पित मन तिम्रो मनमा सराएंकी सानु।।
सुन्दर निर्मल निश्चल झरना सरी तिमी।
त्यही झरनामा आफुलाई झराएंकी सानु।।
प्रकृतिको अनुपम ऋतुराज बसन्त मा।
तिम्रो नाम चिच्चाएर कराएंकी सानु।।
[यो प्रस्तुती कतै पुन प्रकासित गर्नु परेमा स्रोत खुलाएर वा लेखकको पुर्ण सहमतिमा मात्र प्रकासित गर्नुहुन अनुरोध छ । -सपनासंसार ]
चन्द्रवती, तनहुँ
हलः–अबुधावी, युएइ
तिम्रो मेरो आँखा जुद्धा डराएंकी सानु।
यो मनले तिमीलाई मन पराएंकी सानु।।
तिमीसंग अनायासै रमाउँदा एकैछिन।
कल्पनाको संसारमा हराएंकी सानु।।
कस्तो होला तिम्रो मन ठाउँ छकी बस्नलाई।
कल्पित मन तिम्रो मनमा सराएंकी सानु।।
सुन्दर निर्मल निश्चल झरना सरी तिमी।
त्यही झरनामा आफुलाई झराएंकी सानु।।
प्रकृतिको अनुपम ऋतुराज बसन्त मा।
तिम्रो नाम चिच्चाएर कराएंकी सानु।।
[यो प्रस्तुती कतै पुन प्रकासित गर्नु परेमा स्रोत खुलाएर वा लेखकको पुर्ण सहमतिमा मात्र प्रकासित गर्नुहुन अनुरोध छ । -सपनासंसार ]
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ReplyDeleteHi so nice ur gajallllllll
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